जिला बालाघाट – प्राकृतिक वैभव, सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्त्व का संगम
जिला बालाघाट, मध्यप्रदेश के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित एक शांत, सुंदर और संसाधन-संपन्न जिला है। वैनगंगा नदी की गोद में बसा यह जिला छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र राज्यों की सीमाओं को छूता है। इसकी भौगोलिक रचना तीन प्रमुख हिस्सों में विभाजित है — पूर्व का वनक्षेत्र, मध्य की पहाड़ी पट्टियां, और पश्चिम का समतल कृषि क्षेत्र। लगभग 50% क्षेत्र घने वनों से आच्छादित है, जो इसे जैव विविधता से समृद्ध बनाते हैं।
इतिहास की झलक
बालाघाट के इतिहास की जड़ें 18वीं शताब्दी तक जाती हैं, जब यह क्षेत्र गोंड साम्राज्यों – देवगढ़ और गढ़-मंडला – के अधीन था। बाद में मराठाओं के भोंसले वंश और अंततः ब्रिटिश राज के अधीन यह क्षेत्र आया। बालाघाट जिले का गठन वर्ष 1867 में भंडारा, सिवनी और मंडला जिलों के भागों को मिलाकर किया गया।
‘बालाघाट’ नाम की उत्पत्ति स्थानीय घाटों (पहाड़ी मार्गों) से हुई है। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने जब इस क्षेत्र का नाम “बारह घाट” (12 प्रसिद्ध घाटों) के आधार पर प्रस्तावित किया, तो उच्चारण विकृति के कारण यह नाम कालांतर में “बालाघाट” हो गया।
भौगोलिक और प्रशासनिक जानकारी
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क्षेत्रफल: 9,245 वर्ग किलोमीटर
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प्रमुख सीमाएं: महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमाएं
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जलवायु: सामान्य गर्म और आर्द्र
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राजस्व अनुभाग: 7 (बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी, बैहर, लांजी, किरनापुर, परसवाड़ा )
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विकासखंड: 10
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विधानसभा क्षेत्र: 6 (बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी, लांजी, परसवाड़ा, बैहर)
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लोकसभा क्षेत्र: सिवनी-बालाघाट
प्राकृतिक संसाधन और विशेषताएं
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खनिज भंडार: मालांजखंड एशिया की सबसे बड़ी तांबे की खदानों में से एक है।
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जैव विविधता: कान्हा टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा बालाघाट में आता है।
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वन संपदा: साल, सागौन, बांस जैसे बहुमूल्य वृक्षों के साथ समृद्ध वन।
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कृषि उत्पाद: चावल, दालें, और तिलहन।
सांस्कृतिक एवं सामाजिक विरासत
यहां की जनजातीय संस्कृति, लोक कलाएं, और मेले इस जिले की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक हैं।
आज का बालाघाट
आज बालाघाट न केवल प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व से भरपूर है, बल्कि यह खनिज, कृषि और पारंपरिक वन संसाधनों के कारण आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण जिला बन चुका है। यहाँ की प्रशासनिक संरचना, सड़कों, रेलवे और विकास योजनाओं के माध्यम से यह जिला निरंतर विकास की ओर अग्रसर है।