जिला बालाघाट, मध्यप्रदेश का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ की जैव विविधता और पारंपरिक खानपान लोगों की जीवनशैली में गहराई से रचा-बसा है। यहाँ के बांसवाटियों से प्राप्त एक अनोखी और पोषणयुक्त वन उपज है — जिसे स्थानीय भाषाओं में करील या बास्ता भी कहा जाता है।
🌿 क्या है करील / बास्ता?
‘कवले’ दरअसल बांस के पौधे की कोमल नई कोपलें होती हैं, जो मानसून के मौसम में बांस के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती हैं। ये कोपलें दिखने में शंक्वाकार और हल्के हरे रंग की होती हैं।
यह कोपलें थोड़ी कड़वी होती हैं, लेकिन उचित विधि से पकाने पर ये स्वादिष्ट और अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक बन जाती हैं।
🍳 बनाने की पारंपरिक विधियाँ
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बारीक काटकर या कद्दूकस करके सब्ज़ी तैयार की जाती है।
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पहले इसे हल्का उबालकर कड़वापन कम किया जाता है।
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फिर इसे सरसों के तेल में जीरा, लहसुन, हरी मिर्च, हल्दी, और खड़े मसालों के साथ भूना जाता है।
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स्वाद में संतुलन लाने के लिए कभी-कभी नींबू रस, अमचूर या इमली का प्रयोग भी किया जाता है।
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कुछ समुदाय इसे भर्ता या चोखा के रूप में भी खाते हैं।
✅ स्वास्थ्य लाभ
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बास्ता फाइबर, आयरन, और एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर होता है।
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यह पाचन शक्ति को मजबूत करता है और शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक है।
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पारंपरिक रूप से इसे डायबिटीज और वजन नियंत्रण में लाभकारी माना गया है।
🌾 बालाघाट की पारंपरिक वन-संस्कृति की झलक
करील/बास्ता की सब्जी केवल भोजन नहीं, बल्कि वन्य जीवन से जुड़ी आत्मनिर्भर संस्कृति और स्थानीय ज्ञान परंपरा का एक सुंदर उदाहरण है। यह व्यंजन बताता है कि किस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग कर स्वाद, स्वास्थ्य और संस्कृति को एक साथ जिया जा सकता है।
👉 बालाघाट की यात्रा के दौरान इस प्राकृतिक व्यंजन का स्वाद ज़रूर लें — यह अनुभव आपको प्रकृति से जोड़ देगा।