नारबोद उत्सव
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- मनाया जाता है/अवधि: August
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महत्त्व:
बालाघाट जिले में मनाया जाने वाला नारबोद उत्सव
बालाघाट जिले में पोला पर्व के अगले दिन विशेष परंपरा के साथ नारबोद उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से सटे इस जिले में यह पर्व कई पीढ़ियों से मनाया जा रहा है। नारबोद एक सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जिसका उद्देश्य गांव और नगर की सीमाओं से नकारात्मकता, बीमारियों और बुराइयों को दूर करना है।
नारबोद उत्सव का महत्व
नारबोद उत्सव एक प्राचीन मान्यता पर आधारित है, जिसमें गांव और नगर की सीमाओं से मौसमी बीमारियों व अन्य नकारात्मक शक्तियों को बाहर करने के लिए प्रतीकात्मक रूप से मारबत (पूतना) का पुतला जलाया जाता है। लोक मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इसी दिन पूतना का वध किया था, जिससे आसुरी शक्तियों का नाश हुआ। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है।### **निष्कर्ष**
नारबोद बालाघाट जिले का एक अनूठा उत्सव है, जो सामाजिक एकता, पारंपरिक विरासत और बुराइयों के खात्मे का प्रतीक है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज को स्वच्छ और सकारात्मक बनाने का संदेश भी देता है। इस पारंपरिक विरासत को जीवंत बनाए रखने और अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए इसे और अधिक व्यापक रूप से प्रचारित करने की आवश्यकता है। - Festive Attires :
बालाघाट जिले में नारबोद उत्सव की विशेषताएँ और आयोजन प्रक्रिया
1. मारबत का पुतला दहन– इस दिन लोग बांस और कपड़े से मारबत का पुतला बनाते हैं और उसे गली-गली घुमाकर गांव या शहर की सीमा से बाहर ले जाकर जलाते हैं।
2. समाजिक एकता और उल्लास– यह त्योहार उमंग और उत्साह से भरा होता है, जिसमें लोग एक-दूसरे के घर जाकर आतिथ्य सत्कार करते हैं।
3. सांकेतिक संदेश – हर साल मारबत के पुतले पर सामयिक समस्याओं जैसे महामारी, महंगाई, और अन्य सामाजिक बुराइयों पर कटाक्ष करते हुए नारे लगाए जाते हैं। **’घेऊंन जा री नारबोद… कोरोना संग… महंगाई …खांसी खोखला ले जा री नारबोद…’** जैसे नारे लगाते हुए पुतला दहन किया जाता है।
4. दान और सहयोग की परंपरा– इस दिन लोग जरूरतमंदों को दान देने की भी परंपरा निभाते हैं।
5. मिनी होली के रूप में उत्सव– नारबोद को मिनी होली भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन मस्ती, उमंग, और कहीं-कहीं हल्की नोकझोंक भी देखी जाती है।
6. सीमा से बाहर पुतला दहन– जन मानस द्वारा नगरीय क्षेत्र या गाँव में पुतले को नगर/गाँव की सीमा से बाहर ले जाकर जलाया जाता है।