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बालाघाट का दशहरा: परंपरा, श्रद्धा और भव्यता का प्रतीक

हनुमान
  • मनाया जाता है/अवधि: September
  • महत्त्व:

    बालाघाट के दशहरा उत्सव की महत्वपूर्ण विशेषताएं और सांस्कृतिक महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझी जा सकती हैं:
    1. धार्मिक आस्था का केंद्र
    हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा दशहरे को एक आध्यात्मिक ऊंचाई देती है।
    40 दिनों तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, भक्तिभाव की पराकाष्ठा दर्शाता है।
    2. सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन
    पारंपरिक धोती-कुर्ता, बनारसी साड़ी, गहने, गजरा आदि से लोग सजते हैं, जिससे सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है।
    लोकनाट्य, झांकी और रावण दहन जैसे आयोजन संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे ले जाते हैं।
    3. सामाजिक एकता का प्रतीक
    पूरा नगर बिना किसी भेदभाव के इस पर्व में भाग लेता है।
    सामूहिक पूजा, शोभायात्रा और मेलों के आयोजन से सामाजिक जुड़ाव गहरा होता है।
    4. आत्म-अनुशासन और संकल्प का पर्व
    40 किलो मुकुट धारण करना, कड़ी साधना और संयम का उदाहरण है।
    यह युवाओं में धैर्य, तप और निष्ठा का संदेश देता है।
    5. पर्यटन और स्थानीय गौरव
    दशहरे की अनोखी परंपराएं बाहरी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
    इससे स्थानीय व्यापार, हस्तशिल्प और सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा मिलता है।
    6. बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक
    रावण दहन और रामलीला यह दर्शाते हैं कि सत्य और धर्म की विजय निश्चित है, चाहे बुराई कितनी ही बलवान क्यों न हो।

  • लोकप्रिय खाद्य पदार्थ : बरमाराकस या अरबी के पत्तों की बड़ी : बालाघाट की पारंपरिक स्वाद-संस्कृति
  • उत्सव के वस्त्र :

    पुरुषों के परिधान
    धोती-कुर्ता – पारंपरिक सफेद या रंगीन धोती के साथ नीकलेस या कढ़ाईदार कुर्ता।
    साफा या पगड़ी – सिर पर रंग-बिरंगी पगड़ी, शान और परंपरा की निशानी।
    कुर्ता-पायजामा/शेरवानी – विशेष रूप से दशहरे के दिन शोभायात्रा में।
    हनुमान वेशभूषा – मुकुट, गदा, सिंदूर, पूंछ और शरीर पर भस्म/सिंदूर लेप – यह विशेष रूप से “हनुमान रूपधारण” करने वालों के लिए।
    कंधे पर अंगोछा या गमछा – धार्मिक प्रतीक के रूप में।

    महिलाओं के परिधान
    बनारसी/सिल्क/कोसा साड़ी – गहरे रंगों में, ज़री की कढ़ाई और बॉर्डर के साथ।
    लहंगा-चोली – विशेषकर युवा लड़कियों द्वारा शोभायात्रा या सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में।
    गजरा और कांच की चूड़ियाँ – साज-सज्जा में अनिवार्य, पारंपरिक रूप को पूर्ण बनाती हैं।
    कुंदन/गोल्ड ज्वेलरी – मंगलसूत्र, बाली, नथ, बाजूबंद आदि पहनकर महिलाएं पारंपरिक वैभव दर्शाती हैं।
    बिंदी और सिंदूर – सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक भावना का प्रतीक।

    बच्चों के परिधान
    राम-सीता, लक्ष्मण, रावण, हनुमान आदि के वेश – रामलीला और झांकी में।
    छोटा कुर्ता-पायजामा / फ्रॉक-साड़ी – पारंपरिक लुक के साथ बच्चों के लिए आरामदायक।