हट्टा की बावली
इस बावली का निर्माण हट्टा ग्राम के प्राचीन किले में किया गया है। हैय्य वंशीय राजाओ के बाद गोंड राजा हटे सिंह वल्के ने इस बावली का निर्माण कराया था। माना जाता है की हटे सिंह वल्के के राजा होने के कारण इस गांव का नाम हट्टा रखा गया है। राजा हेट सिंह ने गर्मी के दिनों में सैनिको के छिपने ,पेयजल ,स्नान और आराम करने के लिए इस बावली का निर्माण किया था। गोंड काल के बाद मराठा शासक और भोंसले साम्राज्य में भी इसका उपयोग होते रहा है। इस वजह से बावड़ी में मराठा शाशक और भोंसले साम्राज्य की कलाकृतिया देखने को मिलती है।
माना जाता है की इस बावली के अंदर सुरंग है ,जो लांजी का किला तथा मंडला के किले को जोड़ता है। हालांकि इसके बंद होने की जानकारी मिलती है। फिलहाल इस बावड़ी को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर अपने अधीनस्त रखी हुई है।
इस बावली का निर्माण १७वी -१८वी शताब्दी में हुआ था.इस दौरान बड़ी बड़ी चट्टानों को काटकर सजाया गया था। स्थम्भो को लगाया गया था। यह बावली दो मंजिला है। प्रथम तल पर १० स्तम्भ तथा उसके नीचे ८ स्थम्भ आधारित बरामदे एव कक्ष का निर्माण किया गया है। बावड़ी के प्रवेश द्वार पर २ चतुर्भुजी शिव अम्बिका प्रतिमाओं की नक्काशी की गई है।
पुरातत्व विभाग द्वारा इस बावली को संरक्षित स्मारक घोषित करवाया गया है। शाशन ने इस स्मारक को क्षति पहुंचने के लिए जुर्माने का प्रावधान भी किया है इस बावली को सरकार ने वर्ष १९८७ में अपने आधिपत्य में ले लिया था। पहले यह बावली हट्टा के जमींदार के अधीन थी। इसके बाद पुरातत्व विभाग को सौंप दिया.तब से लेकर अभी तक यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।